नमस्कार दोस्तों लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पत्रकारिता कहलाता है लेकिन हालात ये हो गए हैं की अगर पत्रकार ही नहीं रहेंगे तो पत्रकारिता कहां से रहेगी साल 1992 से लेकर 2019 तक अब तक कई पत्रकारों की मौत हो चुकी है लेकिन हमारी मीडिया को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ऐसे कई पत्रकार हैं जो सिर्फ इंटरनेट मीडिया में ही दबकर रह गया शुजात बुखारी, नवीन निश्चल , अच्युतानंद साहू और ना जाने कितने ऐसे पत्रकार हैं जिन्हें उनके सच होने का भुगतान भुगतना पड़ा |
सच्ची और ईमानदारी से पत्रकारिता करने का हाल यही होता है कि लोगों को अपनी मौत से हाथ धोना पड़ता है मौत का कारण कुछ भी हो सकता है आपसी रंजिश, कट्टरपंथी विचारधारा किसी ऐसी बात को उजागर करना जो नहीं उजागर नहीं करनी चाहिए थी ऐसे कई रीजन हो सकते हैं उनकी मौत के लेकिन किसी को नहीं पता असली रीजन क्या है ??
असली रीजन उनकी मौत के साथ ही दब गया….???
साल 2017 गौरी लंकेश इनकी मौत के बाद कुछ वक्त तक प्रिंट मीडिया और टीवी मीडिया जागा था लेकिन कुछ हफ्तों बाद ही खामोशी आ गई लेकिन क्यों खामोशी आई क्योंकि न्यूज़ पुरानी हो गई थी कुछ वक्त के लिए तो सारे पत्रकार एक हुए थे और गौरी लंकेश को न्याय दिलाने के लिए आ गए थे लेकिन असली कातिलों का अब तक कुछ पता नहीं चला उनकी मौत किस वजह से हुई कुछ नहीं पता किसी को कोई जानकारी नहीं कोई कहता है कि उनकी मौत कट्टरपंथी विचारधारा का विरोध करने के कारण हुई कोई कहता है उनकी मौत सच बोलने के कारण हुई कोई कहता है उनकी मौत उन्हीं के आपसी रंजिश के कारण हुई लेकिन हालात और रीजन कुछ भी हूं हकीकत यही है एक पत्रकार की मौत हुई है और उसकी मौत का पता अभी तक नहीं चला।।
खैर अगर पत्रकारिता का पतन कुछ इसी तरह होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे देश देश में तानाशाही चालू हो जाए शायद तानाशाही को चालू हो गई क्योंकि जब पत्रकार एक जेट को खोजने के बाद उसकी उसकी खोज एलियन के द्वारा करते हैं जब कोई व्यक्ति मंदिर में आरती करता है तो उसे बड़ी भारी कवरेज देते हैं वहीं अगर कोई दलित भूख की वजह से मर रहा है तो उसे कोई कवरेज नहीं मिलती वही कोई गरीब अपने कंधे पर अपनी बीवी की लाश लिए जा रहा है अस्पताल से उसे कोई कवरेज नहीं मिली है पत्रकारिता किस ओर जा रही है किसी को नहीं पता नहीं।।।
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धन्यवाद।।।